Sunderkand – 02

मसक समान रूप कपि धरी।
लंकहि चलेउ सुमिरि नरहरी॥
नाम लंकिनी एक निसिचरी।
सो कह चलेसि मोहि निंदरी॥
हनुमानजी मच्छर के समान, छोटा-सा रूप धारण कर, प्रभु श्री रामचन्द्रजी के नाम का सुमिरन करते हुए लंका में प्रवेश करते है॥

Sunderkand – 02 Read More »

Sunderkand – 03

सुनहु पवनसुत रहनि हमारी।
जिमि दसनन्हि महुँ जीभ बिचारी॥
तात कबहुँ मोहि जानि अनाथा।
करिहहिं कृपा भानुकुल नाथा॥
विभीषण कहते है की हे हनुमानजी! हमारी रहनी हम कहते है सो सुनो। जैसे दांतों के बिचमें बिचारी जीभ रहती है, ऐसे हम इन राक्षसोंके बिच में रहते है॥

Sunderkand – 03 Read More »

Sunderkand – 04

सीता तैं मम कृत अपमाना।
कटिहउँ तव सिर कठिन कृपाना॥
नाहिं त सपदि मानु मम बानी।
सुमुखि होति न त जीवन हानी॥
हे सीता! तूने मेरा मान भंग कर दिया है। इस वास्ते इस कठोर खडग (कृपान) से मैं तेरा सिर उड़ा दूंगा॥

Sunderkand – 04 Read More »

Sunderkand – 05

तब देखी मुद्रिका मनोहर।
राम नाम अंकित अति सुंदर॥
चकित चितव मुदरी पहिचानी।
हरष बिषाद हृदयँ अकुलानी॥
फिर सीताजीने उस मुद्रिकाको देखा तो वह सुन्दर मुद्रिका रामचन्द्रजीके मनोहर नामसे अंकित हो रही थी अर्थात उसपर श्री राम का नाम खुदा हुआ था॥

Sunderkand – 05 Read More »

Sunderkand – 06

जौं रघुबीर होति सुधि पाई।
करते नहिं बिलंबु रघुराई॥
राम बान रबि उएँ जानकी।
तम बरुथ कहँ जातुधान की॥
हे माता! जो रामचन्द्रजीको आपकी खबर मिल जाती तो प्रभु कदापि विलम्ब नहीं करते॥

Sunderkand – 06 Read More »

Sunderkand – 07

ब्रह्मबान कपि कहुँ तेहिं मारा।
परतिहुँ बार कटकु संघारा॥
तेहिं देखा कपि मुरुछित भयऊ।
नागपास बाँधेसि लै गयऊ॥
मेघनादने हनुमानजीपर ब्रम्हास्त्र चलाया, उस ब्रम्हास्त्रसे हनुमानजी गिरने लगे तो गिरते समय भी उन्होंने अपने शरीरसे बहुतसे राक्षसोंका संहार कर डाला॥

Sunderkand – 07 Read More »

Sunderkand – 08

जानउँ मैं तुम्हारि प्रभुताई।
सहसबाहु सन परी लराई॥
समर बालि सन करि जसु पावा।
सुनि कपि बचन बिहसि बिहरावा॥
हे रावण! आपकी प्रभुता तो मैंने तभीसे जान ली है कि जब आपको सहस्रबाहुके साथ युद्ध करनेका काम पड़ा था॥

Sunderkand – 08 Read More »

Sunderkand – 09

पूँछहीन बानर तहँ जाइहि।
तब सठ निज नाथहि लइ आइहि॥
जिन्ह कै कीन्हिसि बहुत बड़ाई।
देखउ मैं तिन्ह कै प्रभुताई॥
जब यह वानर पूंछहीन होकर अपने मालिकके पास जायेगा, तब अपने स्वामीको यह ले आएगा॥

Sunderkand – 09 Read More »

Sunderkand – 10

चलत महाधुनि गर्जेसि भारी।
गर्भ स्रवहिं सुनि निसिचर नारी॥
नाघि सिंधु एहि पारहि आवा।
सबद किलिकिला कपिन्ह सुनावा॥
जाते समय हनुमानजीने ऐसी भारी गर्जना की, कि जिसको सुनकर राक्षसियोंके गर्भ गिर गये॥

Sunderkand – 10 Read More »

Scroll to Top