तुलसीदास के दोहे (Tulsidas ke Dohe in Hindi)
राम नाम मनिदीप धरु
जीह देहरी द्वार।
तुलसी भीतर बाहरेहुँ
जौं चाहसि उजियार॥
जीह देहरी द्वार।
तुलसी भीतर बाहरेहुँ
जौं चाहसि उजियार॥
अर्थ (Doha in Hindi):
- राम नाम मनिदीप धरु – तुलसीदासजी कहते है की रामनामरूपी मणिदीप
- मनिदीप – ऐसा दीपक जो हवाके झोंके अथवा तेलकी कमीसे कभी न बुझनेवाला और नित्य प्रकाशमय है
- जीह देहरी द्वार – मुखरूपी दरवाजेकी देहलीज पर रख दो
- जिव्हा से (जीभ से) सतत राम नाम का जाप करते रहो
- तुलसी भीतर बाहरेहुँ – यदि तू भीतर (मन में) और बाहर दोनों ओर
- जौं चाहसि उजियार – प्रकाश चाहता है तो
- लौकिक एवं पारमार्थिक ज्ञान के लिए जीभके द्वारा अखंडरूपसे श्रीराम नामका जाप करता रहो
राम बाम दिसि जानकी
लखन दाहिनी ओर।
ध्यान सकल कल्यानमय
सुरतरु तुलसी तोर॥
लखन दाहिनी ओर।
ध्यान सकल कल्यानमय
सुरतरु तुलसी तोर॥
अर्थ (Doha in Hindi):
- राम बाम दिसि जानकी – भगवान राम के बायीं ओर श्रीजानकीजी है और
- लखन दाहिनी ओर – दाहिनी ओर श्रीलक्ष्मणजी है
- ध्यान सकल कल्यानमय – यह ध्यान सम्पूर्ण रूपसे कल्याणमय है
- सुरतरु तुलसी तोर – तुलसीदासजी कहते है की यह ध्यान तेरे लिये कल्पवृक्ष ही है
- (कल्पवृक्ष – मनमाना फल देनेवाला वृक्ष)
राम नाम जपि जीहँ जन
भए सुकृत सुखसालि।
तुलसी इहाँ जो आलसी
गयो आजु की कालि॥
भए सुकृत सुखसालि।
तुलसी इहाँ जो आलसी
गयो आजु की कालि॥
अर्थ (Doha in Hindi):
- राम नाम जपि जीहँ जन – जीभसे रामनामका जप करके लोग
- भए सुकृत सुखसालि – पुण्यात्मा और परम सुखी हो गये
- तुलसी इहाँ जो आलसी – परंतु इस नाम-जपमें जो आलस्य करते हैं
- गयो आजु की कालि – उन्हें तो आज या कल नष्ट ही हुआ समझो॥
सीता लखन समेत प्रभु
सोहत तुलसीदास।
हरषत सुर बरषत सुमन
सगुन सुमंगल बास॥
सोहत तुलसीदास।
हरषत सुर बरषत सुमन
सगुन सुमंगल बास॥
अर्थ (Doha in Hindi):
- सीता लखन समेत – सीताजी और लक्ष्मण सहित
- प्रभु सोहत तुलसीदास – प्रभु श्रीरामचन्द्रजी सुशोभित हो रहे है
- हरषत सुर बरषत सुमन – देवतागण हर्षित होकर फूल बरसा रहे हैं
- सगुन सुमंगल बास – भगवानका यह सगुण ध्यान परम कल्याणका निवास स्थान (सुमंगल) है॥
चित्रकूट सब दिन बसत
प्रभु सिय लखन समेत।
राम नाम जप जापकहि
तुलसी अभिमत देत॥
प्रभु सिय लखन समेत।
राम नाम जप जापकहि
तुलसी अभिमत देत॥
अर्थ (Doha in Hindi):
- प्रभु सिय लखन समेत – श्रीसीताजी और श्रीलक्ष्मणजीसहित प्रभु श्रीरामजी
- चित्रकूट सब दिन बसत – चित्रकूटमें सदा-सर्वदा निवास करते हैं
- राम नाम जप जापकहि – राम-नामका जप जपनेवालेको प्रभु
- तुलसी अभिमत देत – इच्छित फल देते हैं
नाम राम को अंक है
सब साधन हैं सून।
अंक गएँ कछु हाथ नहिं
अंक रहें दस गून॥
सब साधन हैं सून।
अंक गएँ कछु हाथ नहिं
अंक रहें दस गून॥
अर्थ (Doha in Hindi):
- नाम राम को अंक है – श्रीरामजीका नाम अंक है और
- सब साधन हैं सून – सब साधन शून्य (0) हैं
- अंक गएँ कछु हाथ नहिं – अंक न रहनेपर तो कुछ भी हाथ नहीं लगता,
- रामनामके बिना जो साधन होता है वह कुछ भी फल नहीं देता।
- अंक रहें दस गून – परंतु शून्यके पहले अंक आनेपर वे दसगुने हो जाते है
- रामनामके जपके साथ जो साधन होते है, वे दसगुने लाभदायक हो जाते है
बिनु सतसंग न हरिकथा
तेहिं बिनु मोह न भाग।
मोह गएँ बिनु रामपद
होइ न दृढ अनुराग॥
तेहिं बिनु मोह न भाग।
मोह गएँ बिनु रामपद
होइ न दृढ अनुराग॥
अर्थ (Doha in Hindi):
- बिनु सतसंग न हरिकथा – सत्संगके बिना हरिकथा (भगवानकी कथाएँ) सुननेको नहीं मिलतीं
- तेहिं बिनु मोह न भाग – भगवान्की कथाओंके सुने बिना मोह नहीं भागता और
- मोह गएँ बिनु – मोहका नाश हुए बिना
- रामपद होइ न दृढ अनुराग – भगवान् श्रीरामजीके चरणोंमें अचल (दृढ) प्रेम नहीं होता
तब लगि कुसल न जीव कहुँ
सपनेहुँ मन बिश्राम।
जब लगि भजत न राम कहुँ
सोकधाम तजि काम॥
सपनेहुँ मन बिश्राम।
जब लगि भजत न राम कहुँ
सोकधाम तजि काम॥
अर्थ (Doha in Hindi):
- तब लगि कुसल न जीव कहुँ – तब तक मनुष्य के लिये न तो कुशल है और
- सपनेहुँ मन बिश्राम – न स्वप्रमें भी कभी उसके मनको शान्ति मिलती है
- जब लगि भजत न राम कहुँ सोकधाम तजि काम – जबतक यह जीव शोकके घर काम (विषयीकी कामना) को त्यागकर श्रीरामजीको नहीं भजता
राम नाम अवलंब बिनु
परमारथ की आस।
बरषत बारिश बूँद गहि
चाहत चढ़न अकास॥
परमारथ की आस।
बरषत बारिश बूँद गहि
चाहत चढ़न अकास॥
अर्थ (Doha in Hindi):
- राम नाम अवलंब बिनु – जो रामनामका सहारा लिये बिना ही
- परमारथ की आस – मोक्षकी (परमार्थकी) आशा करता है
- बरषत बारिद बूँद गहि – वह तो मानो बरसते हुए बादलकी बूँदको पकड़कर
- चाहत चढ़न अकास – आकाशमें चढ़ना चाहता है
- जैसे वर्षाकी बूँदको पकड़कर आकाशपर चढ़ना असम्भव है, वैसे ही रामनामका जप किये बिना परमार्थकी प्राप्ति असम्भव है
बिगरी जनम अनेक की
सुधरै अबहीं आजु।
होहि राम को नाम जपु
तुलसी तजि कुसमाजु॥
सुधरै अबहीं आजु।
होहि राम को नाम जपु
तुलसी तजि कुसमाजु॥
अर्थ (Doha in Hindi):
तुलसीदासजी कहते है कि,
- बिगरी जनम अनेक की – तेरी अनेकों जन्मोंकी बिगड़ी हुई स्थिति
- सुधरै अबहीं आजु – आज अभी सुधर सकती है
- तुलसी तजि कुसमाजु – कुसङ्गतिको और चित्तके सारे बुरे विचारोंको त्यागकर
- होहि राम को नाम जपु – तू रामका बन जा और उनके नामका जप कर
घर घर माँगे टूक
पुनि भूपति पूजे पाय।
जे तुलसी तब राम बिनु
ते अब राम सहाय॥
पुनि भूपति पूजे पाय।
जे तुलसी तब राम बिनु
ते अब राम सहाय॥
अर्थ (Doha in Hindi):
- घर घर माँगे टूक – तुलसीदासजी कहते है कि, उस समय घर-घर टुकड़े माँगता था
- जे तुलसी तब राम बिनु – जिस समय मैं रामसे (श्रीरामके आश्रयसे) रहित था
- ते अब राम सहाय – अब जो श्रीरामजी मेरे सहायक हो गये हैं तो फिर
- पुनि भूपति पूजे पाय – राजालोग मेरे पैर पूजते हैं
प्रीति प्रतीति सुरीति सों
राम राम जपु राम।
तुलसी तेरो है भलो
आदि मध्य परिनाम॥
राम राम जपु राम।
तुलसी तेरो है भलो
आदि मध्य परिनाम॥
अर्थ (Doha in Hindi):
तुलसीदासजी कहते हैं कि
- प्रीति प्रतीति सुरीति सों – तुम प्रेम, विश्वास (प्रतीति) और विधिके साथ (सुरीति, सच्चे मन से)
- राम राम जपु राम — राम-राम-राम (राम नाम) जपो,
- आदि मध्य परिनाम — इससे आदि, मध्य और अन्त तीनों ही कालोंमें
- तुलसी तेरो है भलो — तेरा कल्याण है, तेरा भला होगा
तुलसीदास के दोहे – 2 (Tulsidas ke Dohe – 2)
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