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तुलसीदास के दोहे – भाग 3 (Tulsidas ke Dohe in Hindi – Page 3)
तुलसी प्रीति प्रतीति सों
राम नाम जप जाग।
किएँ होइ बिधि दाहिनो
देइ अभागेहि भाग॥
राम नाम जप जाग।
किएँ होइ बिधि दाहिनो
देइ अभागेहि भाग॥
अर्थ (Doha in Hindi):
- तुलसी प्रीति प्रतीति सों – तुलसीदासजी कहते है कि प्रेम और विश्वासके साथ
- राम नाम जप जाग – राम-नामजप रूपी यज्ञ करनेसे
- किएँ होइ बिधि दाहिनो – विधाता अनुकूल हो जाता है और
- देइ अभागेहि भाग – अभागे मनुष्यको भी परम भाग्यवान् बना देता है
लंक बिभीषन राज कपि
पति मारुति खग मीच।
लही राम सों नाम रति
चाहत तुलसी नीच॥
पति मारुति खग मीच।
लही राम सों नाम रति
चाहत तुलसी नीच॥
अर्थ (Doha in Hindi):
- लंक बिभीषन राज कपि – श्रीरामजीसे विभीषणने लंका पायी, सुग्रीवने राज्य प्राप्त किया
- पति मारुति खग मीच – हनुमानजीने सेवककी पदवी (प्रतिष्ठा) पायी और पक्षी जटायुने देवदुर्लभ उत्तम मृत्यु प्राप्त की
- चाहत तुलसी नीच – परंतु तुलसीदास तो उन प्रभु श्रीरामसे केवल
- लही राम सों नाम रति – रामनाममें प्रेम ही चाहता है
हृदय सो कुलिस समान
जो न द्रवइ हरिगुन सुनत।
कर न राम गुन गान जीह
सो दादुर जीह सम॥
जो न द्रवइ हरिगुन सुनत।
कर न राम गुन गान जीह
सो दादुर जीह सम॥
अर्थ (Doha in Hindi):
- हृदय सो कुलिस समान – श्रीहरिके गुणोंको सुनकर जो हृदय द्रवित नहीं होता
- जो न द्रवइ हरिगुन सुनत – वह हृदय वज्रके समान कठोर है और
- कर न राम गुन गान जीह – जो जीभ श्रीरामका गुणगान नहीं करती, वह जीभ
- सो दादुर जीह सम – मेंढककी जीभके समान व्यर्थ ही टर-टर करनेवाली है
स्वारथ परमारथ सकल
सुलभ एक ही ओर।
द्वार दूसरे दीनता
उचित न तुलसी तोर॥
सुलभ एक ही ओर।
द्वार दूसरे दीनता
उचित न तुलसी तोर॥
अर्थ (Doha in Hindi):
- स्वारथ परमारथ सकल सुलभ – जब सब स्वार्थ और परमार्थ
- एक ही ओर – एक श्रीरामचन्द्रजीकी ओरसे ही सुलभ है
- द्वार दूसरे दीनता – तब तुझे दूसरेके दरवाजेपर
- उचित न तुलसी तोर – दीनता दिखलाना उचित नहीं है
तुलसी रामहि आपु तें
सेवक की रुचि मीठि।
सीतापति से साहिबहि
कैसे दीजै पीठि॥
सेवक की रुचि मीठि।
सीतापति से साहिबहि
कैसे दीजै पीठि॥
अर्थ (Doha in Hindi):
- तुलसी रामहि आपु तें – तुलसीदासजी कहते है कि श्रीरामचन्द्रजीको अपनी रुचिकी अपेक्षा
- सेवक की रुचि मीठि – सेवककी रुचि अधिक मधुर लगती है
- वे अपनी रुचि छोड़ देते हैं, परंतु सेवककी रुचि रखते है,
- सीतापति से साहिबहि – ऐसे श्रीसीतापतिके समान स्वामीसे
- कैसे दीजै पीठि – क्योंकर विमुख हुआ जाय
राम सनेही राम गति
राम चरन रति जाहि।
तुलसी फल जग जनम को
दियो बिधाता ताहि॥
राम चरन रति जाहि।
तुलसी फल जग जनम को
दियो बिधाता ताहि॥
अर्थ (Doha in Hindi):
- राम सनेही राम गति – जो श्रीरामका ही प्रेमी है
- राम चरन रति जाहि – श्रीरामके ही चरणोंमें जिसकी प्रीति (भक्ति) है
- दियो बिधाता ताहि – तुलसीदासजी कहते है, सिर्फ उसीको विधाताने
- तुलसी फल जग जनम को – जगतमें जन्म लेनेका यथार्थ फल दिया है
जे जन रूखे बिषय रस
चिकने राम सनेहँ।
तुलसी ते प्रिय राम को
कानन बसहि कि गेहँ॥
चिकने राम सनेहँ।
तुलसी ते प्रिय राम को
कानन बसहि कि गेहँ॥
अर्थ (Doha in Hindi):
- जे जन रूखे बिषय रस – तुलसीदासजी कहते है कि जो विषय-रससे विरक्त हैं
- चिकने राम सनेहँ – और रामप्रेमके रसिक हैं,
- तुलसी ते प्रिय राम को – वे ही श्रीरामजीके प्यारे हैं
- कानन बसहि कि गेहँ – फिर चाहे वे वनमें रहें या घरमें (सन्यासी हों या गृहस्थ)
तुलसी जौं पै राम सों
नाहिन सहज सनेह।
मूँड़ मुड़ायो बादिहीं
भाँड़ भयो तजि गेह॥
नाहिन सहज सनेह।
मूँड़ मुड़ायो बादिहीं
भाँड़ भयो तजि गेह॥
अर्थ (Doha in Hindi):
- तुलसी जौं पै राम सों – तुलसीदासजी कहते है कि यदि प्रभु श्रीरामसे
- नाहिन सहज सनेह – स्वाभाविक प्रेम नहीं है
- मूँड़ मुड़ायो बादिहीं – तो फिर व्यर्थ ही सिर मुंडाया, साधु हुए और
- भाँड़ भयो तजि गेह – घर छोड़कर वैराग्यका स्वाँग भरा
सेये सीता राम नहिं
भजे न संकर गौरि।
जनम गँवायो बादिहीं
परत पराई पौरि॥
भजे न संकर गौरि।
जनम गँवायो बादिहीं
परत पराई पौरि॥
अर्थ (Doha in Hindi):
- सेये सीता राम नहिं – यदि श्रीसीतारामजीकी सेवा नहीं की और
- भजे न संकर गौरि – श्रीगौरीशंकरका (भगवान शंकर) भजन नहीं किया तो
- परत पराई पौरि – पराये दरवाजेपर पड़े रहकर
- जनम गँवायो बादिहीं – व्यर्थ ही जन्म गँवाया
स्वारथ परमारथ रहित
सीता राम सनेहँ।
तुलसी सो फल चारि को
फल हमार मत एहँ॥
सीता राम सनेहँ।
तुलसी सो फल चारि को
फल हमार मत एहँ॥
अर्थ (Doha in Hindi):
- स्वारथ परमारथ रहित – तुलसीदासजी कहते है कि स्वार्थ (भोग) और परमार्थ (मोक्ष) की इच्छासे रहित
- सीता राम सनेहँ – जो श्रीसीतारामके प्रति निष्काम और अनन्य प्रेम है
- तुलसी सो फल – तुलसीदासजी कहते है की उसका फल
- चारि को फल – चारों फलोंका (अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष) भी महान फल है
- हमार मत एहँ – यह मेरा मत है
स्वारथ सीता राम सों
परमारथ सिय राम।
तुलसी तेरो दूसरे द्वार
कहा कहु काम॥
परमारथ सिय राम।
तुलसी तेरो दूसरे द्वार
कहा कहु काम॥
अर्थ (Doha in Hindi):
- स्वारथ सीता राम सों – श्रीसीतारामसे ही तेरे सब स्वार्थ सिद्ध हो जायँगे और
- परमारथ सिय राम – श्रीसीताराम ही तेरे परमार्थ (परम ध्येय) है
- तुलसी तेरो दूसरे द्वार – तुलसीदासजी कहते है कि फिर बतला तेरा दूसरेके दरवाजेपर
- कहा कहु काम – क्या काम है?